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بِما إنّي سَراب ../ و واحِتِك فيها : خَضارْ و مَيْ..//..أبَروي مِن ضِما أرضي عِيونِك ../ و أغتِرِب ببكاي .!
رِجيتِك : هاربٍ مِنّي ../ و أظِنْ إنّي جِبَرتِك فِيْ..//..ولكِنّي .. تِبِعتْ آثار قَلبي ../ و الشِّعور : خِطاي .!
أحِسِّ إنّي ولا شيٍ ../ تِمَرْكَزّ : وَسطْ كومَة شَيْ..//..ضِلوعٍ ضَمَّت إحساسَ الخَفوق ../ التّايِه : بأرجاي .!
لِذا و إن قادِني حِلمي أبيكْ ../ تحرّره : بيْدَيْ..//..وصيحْ بوَجه هَقواتي ../ تَرى ثِقلَ المَنام : أعماي .!